Friday, August 7, 2009

ढीठ बड़ो जसुदा को लला



ढीठ बड़ो जसुदा को लला, भरी भीर में नैन लड़ाबतु है।
आली कहूँ किनसों मन की, मोपै साँबरो रंग चढ़ाबतु है।।
हौं कहि हारी बिथा सिग सौं, पै कोऊ न धीर बँधाबतु है।
जानै कौन सी वो चटसार पढ़ो, सबै उलटो पहाड़ो पढ़ाबतु है।।

-बदनसिंह यादव मस्ताना

Wednesday, August 5, 2009

अँखियाँ हमरी रसखान भई हैं


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


रूप अनूप निहारत ही, अँखियाँ हमरी रसखान भई हैं।
ब्याधि दुरी सिगरी मन की, तन पाँखुरियाँ छबिमान भई हैं।।
आलस नांय बसै नियरे, घड़ियाँ गमगीन पयान भई हैं।
मोहन कौ लखि के हिय में, नख तें सिख लौं रसखान भई हैं।

-बदन सिंह यादव "मस्ताना"