Wednesday, August 5, 2009

अँखियाँ हमरी रसखान भई हैं


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


रूप अनूप निहारत ही, अँखियाँ हमरी रसखान भई हैं।
ब्याधि दुरी सिगरी मन की, तन पाँखुरियाँ छबिमान भई हैं।।
आलस नांय बसै नियरे, घड़ियाँ गमगीन पयान भई हैं।
मोहन कौ लखि के हिय में, नख तें सिख लौं रसखान भई हैं।

-बदन सिंह यादव "मस्ताना"

3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

ras bhara.narayan narayan

36solutions said...

हिन्‍दी ब्‍लागजगत में आपका स्‍वागत है.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।